Sandeep Sharma

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लेखनी कहानी -08-Mar-2024

मनाए कैसे नारी दिवस, हिय मे उठती अब है हिचक, क्या सच मे हम इसका श्रेय ले ले जो करते स्व उसको ही कह ले।।

नार की जीवन गाथा विशाल, कैसे समेटू कविता मे आज।। तमाम रिश्ते इससे पनपते, करती सृजन, तब फूल से खिलते।।

आती जब यह गोद मे आप, पुत्री होती है वो,हर माँ बाप, और चाचा चाची,फूफा बुआ, मौसा मासी, की मिलती दुआ।।

आने से पूर्व, भय से परिपूर्ण, रखी जाएगी,या बन जाएगी चूर्ण।।

यदा-कदा जो आ भी गई , खुशिया न उतनी मनाई गई ।।

इससे भी है वो प्रसन्न, मिला तो कम से कम जीवन।।

कैसे तैसे बडी हुई जो, बटती वो कई हिस्सो मे रही वो ,, मिला था, जो कुछ, काट पीट कर, उसी मे रही खुश हाथ भींच कर।।

एक बात उसे समझ न आई, क्यू टटोली ,इतनी गई वो जाई,।।

हर ही नज़र तो उसे तौलती, वो हँस कर गर जरा सा बोलती।।

तुरंत लग जाती उस पर तोहमत, अच्छी न है उसकी सोहबत।।

जबकि वह भी आम इंसां है, पर दर्जा रहा दोयम सदा है।।

बात खिलौनो की जब आई पहले तो न दिए दिलवाई, जो गर लेकर, दे भी दिए तो,हिस्से उसके गुड़िया ही आई।।

आगे की कथा भी सब ही ऐसी, कतरन, सिलाई, फटी सी जैसी,

अधूरेपन की वह रही मिसाल , कम ही दखल, और दिखती परवाह।।

अब प्रश्न बडा है, वो जो खड़ा है, कि जिम्मेदार, कौन बड़ा है।।

इसके जवाब के हितैषी, समाज व्यवस्था, सब ही वैसी,

करो न कुछ  तरबियत, ऐसी, पाए जीवन  यह भी बेटे जैसी।।

तो इसी को फिर  बतियाना होगा, पुरुष को यह समझाना होगा,, देवी सी है यह संस्कारित, मिले तो शीश निवाना होगा।।

उस पर नार को भी समझाना होगा, बेटी तक तो  खूब ठीक है, बहू मे भी बेटी को पाना होगा।।

होगी उससे  भी कई भूल, माफ करना न होगा फिजूल।।

और बहू को भी समझ आना होगा, घर पति का ही व्यवस्थित करे वो बाहर न कोई  ठिकाना होगा।।

देखना इससे घर महकेगा, हर ऑगन फिर से चहकेगा खिलेंगे समानांतर से फूल मर्यादित जीवन, आशाए अनुकूल, ऐसे मे देखना सभी सब,ही तो दिखेंगे  चेहरे नारी के भी नूर।। =/= संदीप शर्मा।।

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3 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 08:49 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

11-Mar-2024 01:29 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

10-Mar-2024 07:32 PM

Nice

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